छत्तीसगढ़ : विधानसभा से लगभग दो हफ्ते पहले पारित हुआ आरक्षण विधेयक अब अटक गया है। इस विधेयक में मंजूर की गई आरक्षण व्यवस्था तभी लागू हो सकती है, जब राज्यपाल डा. अनुसुइया उइके के हस्ताक्षर हो जाएं। राज्यपाल ने हस्ताक्षर करने से पहले राज्य सरकार से 10 बिंदुओं पर जानकारी मांगी है। राजभवन से भेजे पत्र में कहा गया है कि विधेयक पर विधि विशेषज्ञों से राय लेने के बाद सवाल तैयार किए हैं, जिनकी जानकारी जरूरी है। उधर, सीएम भूपेश बघेल ने बुधवार को सुबह आरोप लगाया कि भाजपा नेता राज्यपाल पर आरक्षण विधेयक को रोकने के लिए दबाव बना रहे हैं। सीएम ने भाजपा पर खुला आरोप लगाया कि ये लोग आरक्षण विरोधी हैं।
सरकार बताए, किस डेटा पर बनाया विधेयक: राजभवन
आरक्षण विधेयक को लेकर राजभवन ने राज्य सरकार को भेजे गए जिन 10 सवालों का जवाब मांगा है, उनके मूल में यही है कि सरकार ने वर्गों की संख्या के जिस डाटा के आधार पर नया आरक्षण विधेयक बनाया है, उसे राजभवन को बताना चाहिए। अगर सरकार ने जातियों को लेकर कोई सर्वे किया था, तो इसकी जानकारी भी दी जानी चाहिए। इस सवाल का जवाब भी आना चाहिए कि हाईकोर्ट से 58 प्रतिशत आरक्षण रद होने के बाद ढाई महीने में ऐसी क्या विशेष परिस्थिति बन गई कि 76 प्रतिशत आरक्षण देना पड़ रहा है?
राजभवन सचिवालय ने शासन को भेजे पत्र में कहा है कि इन सवालाें के जवाब जल्द से जल्द दिए जाएं। राज्यपाल डा. उइके ने पत्र भेजने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि विधेयक के मसौदे पर विधि विशेषज्ञों से चर्चा के बाद 10 सवाल तैयार किए गए हैं। सरकार से इन्हीं का जवाब मांगा गया है। इसके पीछे कोशिश यही है कि अब जो भी नया विधेयक बनें, उसे कोर्ट में कोई चैलेंज नहीं कर पाए।
राज्यपाल पर भाजपा के नेताओं का दबाव: भूपेश
उधर, बुधवार को दोपहर सीएम भूपेश बघेल ने मीडिया से कहा कि राज्यपाल आरक्षण विधेयक पर तुरंत हस्ताक्षर करने की बात कह रहीं थीं, लेकिन अब किंतु-परंतु लगा रही हैं। इसका मतलब यह है कि वह तो चाहती थीं। राज्यपाल आदिवासी महिला हैं, निश्छल हैं। लेकिन भाजपा के लोग उनपर दबाव बनाकर रखे हुए हैं। इस कारण उनको ऐसा करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने प्रदेश के लोगों का मजाक बनाकर रख दिया है।
राज्यपाल जब तक विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी, जब तक वह सरकार को वापस नहीं मिलेगा और इस पर काम शुरू नहीं कर सकते। भाजपा का एक नेता कहता है कि 70 दिन तक क्या करते रहे, दूसरा कहता है कि इतनी जल्दी करने की क्या जरूरत है। विधानसभा में डा. रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष धरम कौशिक का भाषण निकालकर देख लीजिए। इन लोगों ने फिर वैसी ही भाषा का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, ये सभी आरक्षण विरोधी हैं। विधेयक सर्वसम्मति से पारित है, इसे रोकना नहीं चाहिए।
आरक्षण खारिज होने से अब तक
19 सितंबर 2022 को हाईकोर्ट ने 58% आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताकर नकार दिया और कहा कि पूर्व में की गई नियुक्तियां बरकरार रहेंगी। आने वाली भर्तियां कोर्ट के बताए नियम के अनुसार होंगी।
लोकसेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनके परिणाम रोके। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
सरकार ने आरक्षण पर एक-दो दिसम्बर को विशेष सत्र बुलाया।